Thursday, 11 August 2016

Yoga 2

मुनि समाज की स्थापना शिव कुमार शास्त्री द्वारा १९३५ को गोरखपूर (उत्तर प्रदेश ) में  हुआ !  योंग प्रशिक्षित मुनि हरिहर नाथ पांडेय का मैं अनुसरण करता हू ! योंग की बारे में जो लिख रहा हू वह सत्य  और अनुभव पर आधारित है l
१. योंग का अधिकारी : जिस घर में स्त्री पुरुष का योंग हो वही योगी हो सकता है ! योगी में योगी महादेव का सती से बिवाह हुआ था, फिर पार्वती से बिबाह हुआ ! पद्मासन में बैठे ब्रह्मा जी भी बिबाह किए ! सुखासन पर बैठे बिष्णु भी लकछमि के साथ देखे जाते है ! अतः गृहथी ही योगी हो सकता है, जो संसार से मुख़ मोड़कर इधर-उधर घूमता बिना आपने कर्म किए मांगता फिरता है वह योगी कैसे हो सकता है ?
संसार से मन थक कर निंद्रा में स्वपन देखता है, स्वपन भी एक संसार ही है ! हम संसार से किसी भी प्रकार से अलग नहीं हो सकते तब जो संसारी नही है (साधु जो घर, पत्नी, गर्भ धरणी माता, जन्म देने वाले पिता को छोड़ कर भटकते रहते है वह परमात्मा के आदेश को नकारते है ) वह योगी कैसे हो सकता है ? अत संसारी लोग जो कर्म करते हुवे इस संसार में जीते है योगी हो सकते है !
जीव चेतन है, चेतन में इच्छा और मन का होना स्वाभाबिक है ! जिसमे इच्छा, मन, बिचार कुछ भी नहीं  है वह चेतन कैसे कहला सकता है ? अतः चेतन जहां-जहां रहेगा मन भी वहां-वहां रहेगा ! जहां चेतनता है वहां इच्छा और मन भी रहेगा ! संसार से पिंड छूटना असम्भव है ! अतः संसार में रहकर योग करे योगी वही है इसी में परम आनंद है ! जय जीव !      

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